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आचार्य श्री गोपेश जी महाराज

मेरा परिचय : दो प्रकार का ।

प्रथम – आधिभौतिक

द्वितीय – आध्यात्मिक

सर्वप्रथम सभी के अन्तःकरण में विराजित प्यारे प्राणाधार श्री प्रिया-प्रियतम के श्री चरणों में सादर साष्टांग कोटिशः सप्रेम दण्डौत ।

आधिभौतिक परिचय –

यद्यपि – हमारे प्यारे जै जै ने हमको दो ही सेवायें देकर इस जग में भेजा है ।
१ – भगवत्प्रेम का प्रत्येक हृदय में प्रवाह ।
२ – वैदिक विशुद्ध श्री सत्य सनातन धर्म की यथासम्भव सेवा ।
“बस इतना ही परिचय पर्याप्त है” ।
तथापि सभी भगवत्प्रेमियों व वैदिक विशुद्ध श्री सत्य सनातन धर्म के सेवकों के प्रेममय सन्तुष्टयर्थ यह परिचय ध्यान से पढ़ें ।

लक्ष्य – केवल प्यारे जै जै (श्रीभगवान् जी) ।

पूज्यवर श्री सद्गुरुदेव भगवान् – अनन्त श्री विभूषित परम पूज्य जगद्गुरु द्वाराचार्य श्री मलूक पीठाधीश्वर “भागवत-सम्राट” श्री श्री राजेन्द्रदास देवाचार्य जी महाराज (श्री मलूकपीठ , श्री धाम वृन्दावन ) ।

प्रिय सिद्धान्त – पूजनीय प्रिय परम जहाँ ते । मानिय सबहिं राम के नाते ।।

नित्यनिवास – श्री धाम वृन्दावन ।

परिवार – श्री ठाकुर जी का नित्य परिकर तो है ही साथ में आधिभौतिक शिक्षार्थ यह भी समझें –

“सत्यं माता पिता ज्ञानं , धर्मो भ्राता दया सखा ।
शान्तिः पत्नी क्षमा पुत्रः , षडेते मम बान्धवाः ।।”

मेरी माता जी – वह अखण्ड सत्य सत्ता ।
मेरे पिता जी – भगवदीय प्रेममय विशुद्ध ज्ञान ।
मेरे भ्राता जी – वैदिक विशुद्ध श्री सत्य सनातन धर्म ।
मेरा मित्र – जीवमात्र के प्रति दयाभाव ।
मेरी पत्नी – भगवदीय सद्कृपा से प्राप्त अखण्ड मानसिक शान्ति ।
मेरा पुत्र – क्षमाशील स्वभाव । (यथायोग्य दण्डित करना भी क्षमा ही है ) …

प्रिय – सत्य ।

वैदिक विशुद्ध श्री सत्य सनातन धर्म की जन्मना वर्ण व्यवस्था के आधार पर भौतिक परिचय :-

गोत्र – श्री भारद्वाज ।

प्रवर – श्री भारद्वाज , श्री आङ्गिरस और श्री बार्हस्पत्य ।

वेद – श्री यजुर्वेद(शुक्ल) ।

उपवेद – धनुर्वेद ।

शाखा – माध्यन्दिनी ।

सूत्र – कात्यायन ।

छन्द – अनुष्टुप्छन्दः ।

शिखा – दक्षिण ।

पाद – दक्षिण ।

द्वार – दक्षिण ।

देवता – श्री शिव ।

देवी – भगवती श्री चामुण्डा माता ।

सीयराम मय सब जग जानी ।
करहुँ प्रनाम जोरि जुग पानी ।।


अब प्रेममय आध्यात्मिक परिचय :-

श्री नित्यनिकुञ्जेश्वरी , रस-रासेश्वरी , वृषभानुजा , प्राणेश्वरी , कृपा बरसाने वारी , वेदातीता , ब्रज की अलबेली सरकार , जीवनसार-सर्वस्व , श्री श्री राधारानी , श्री स्वामिनी जू , अनन्तानन्त प्रेम-माधुर्य-रस-भाव-आनन्द-केलि की अगाध-अबाध महा-महासागर श्री लाड़ली जू व इनके ही अभिन्न-तत्त्व नित्य-निभृत-निकुञ्ज विलासी , कोटि-कोटि कन्दर्प-दर्प-दमनीय-कमनीय कान्ति वाले परम लाड़ले , ब्रज के अलबेले सरकार श्री श्री राधावल्लभलाल जू महाराज की कृपाकटाक्षमात्र ही मुझ दासानुदास का परिचय है ।

प्यारो ! प्रथम तो दासानुदास का स्वयं में कोई परिचय होता नहीं । जो भी परिचय मानना है वह केवल और केवल प्यारे प्राणाधार श्री प्रिया-प्रियतम के ही कृपाबल से मानना चाहिये । तथा च – जिस पाञ्चभौतिक देह के परिचय की भावना आप लोगों के मन में है (यद्यपि आपका भाव प्रणम्य है तथापि) उस नश्वर शरीर का क्या परिचय दूँ ? यह तो प्रत्येक जन्म में अपना परिचय परिवर्तित कर देता है ! अतएव इस शरीर के परिचय से क्या परिचय करवाना ?

” श्री राधा मेरी स्वामिनी , मैं श्री प्यारीजू कौ दास ।
जन्म जन्म मोय दीजियो , श्री वृन्दावन वास ।।”

जै जै श्यामा जै जै श्याम ।
जै जै श्री वृन्दावन धाम ।।

सप्रेम –

दासानुदास – आचार्य “बालशुक” गोपेश ।
(श्री धाम वृन्दावन) ।

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