प्यारो !
वस्तुतः शास्त्रों और भगवान् में तत्त्वतः कोई भेद नहीं है । तथापि जब ये रूप धारण करते हैं तो इनके प्रत्यक्षतः सूक्ष्म भेद को समझना आवश्यक है …
शास्त्र हैं शब्दब्रह्म और प्यारे प्रभु हैं प्रत्यक्ष ब्रह्म ।
शास्त्र – बुद्धि का विषय है , प्यारे जै जै हृदय का ।
शास्त्र गुरुकृपा से सम्भव हैं और गोविन्द स्वयं की कृपा से ।
शास्त्र भी भ्रमित करते हैं और भगवान् भी भ्रमित कर देते हैं
शास्त्र ज्ञान हैं , प्यारे प्रभु अनुभव हैं ।
शास्त्र मार्ग रूप ब्रह्म हैं , भगवान् परम-चरम लक्ष्यरूपी ब्रह्म हैं ।
शास्त्र प्रकाश हैं , और हमारे प्यारे जै जै प्रकाशक हैं ।
शास्त्र -प्रार्थना है , भगवान् – प्रार्थ्य हैं ।
शास्त्र स्वयं भगवान् भी हैं और भगवान् स्वयं शास्त्र भी हैं ।
अतएव जब जीवन में विधि-निषेधादि मर्यादाओं में कोई निर्णय लेना होता है तब शास्त्रों की शरण में जाने की आज्ञा है –
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते ●●● आदि और जब जीवन में कुछ शेष न रह गया हो अथवा जीव इस योग्य ही न रह पाये कि कुछ शेष रह सके – ऐसी अन्तिम स्थिति में :-
मूढः कश्चन वैयाकरणो,
डुकृञ्करणाध्ययन धुरिणः।
श्रीमच्छम्कर भगवच्छिष्यै,
बोधित आसिच्छोधित करणः॥३२॥
भजगोविन्दं भजगोविन्दं,
गोविन्दं भजमूढमते।
नाम स्मरणा दन्य मुपायं,
नहि पश्यामो भव तरणे॥३३॥
केवल और केवल प्यारे जै जै ही एकमात्र सर्वविध पूर्णाश्रय होते हैं